वैसे तो मैं ब्लॉग जगत से दूर ही रहता हूँ, कभी कभार दोस्त ईमेल करदेते हैं तो पोस्ट पढ़ लेता हूँ. एक दिन चिटठा जगत पर नज़र दौड़ाई तो शरीफ साहब के लेख पर नज़र पढ़ गई, वहां तो घमासान मचा हुआ था. लेकिन लोगो के कमेंट्स देखकर मुझे पड़ा आश्चर्य हुआ, लोग उनके पीछे हाथ धो-कर पड़े हुए थे. कुछ लोग मुसलमानों और इस्लाम धर्म के खिलाफ उलटा-सीधा लिखते रहते हैं, बल्कि इसके सिवा कुछ और लिखते ही नहीं हैं. फिर भी उन्हें कभी किसी ने कुछ नहीं कहा, ना तो कभी कानून की धमकी दी गई और ना मारने-पीटने की बात हुई, बल्कि अमित शर्मा जैसे कुछ लोग वहां बेसिर-पैर की बातों पर खुश हो रहे होते हैं. लेकिन जब अयाज़ और असलम कासमी ने श्री राम के जन्म के अनुमानित समय के बारे में पूछा (जो कि तक़रीबन 10-11 लाख साल पहले का है) तो बवाल मच गया. कुछ लोग तो वहां बाकायदा लड़ाई के लिए पहुँच गए और भूल गए की जब मुसलमानों के खिलाफ लिखा जाता है तो उन्हें कुछ फरक नहीं पड़ता है. आखिर यह दोगलापन क्यों?
देशनामा पर सुरेश चिपलूनकर साहब तो पुरे भारत वासियों को ही 'हराम की औलाद' कह चुके हैं. और वहां भी एक मुसलमान 'साजिद अली' को छोड़ कर किसी ने उनके खिलाफ कुछ नहीं बोला, क्यों? क्या विरोध केवल मुसलमानों का ही होना चाहिए?
http://deshnama.blogspot.com/2010/06/blog-post_29.html
सुरेश चिपलूनकर तो वेद-कुरान-पुराण को अप्रासंगिक और बकवास तक कह डालते हैं और किसी के मुंह से आह भी नहीं निकलती.
http://vedquran.blogspot.com/2010/04/save-yourself.html
मिश्रा जी सलीम और अनवर जमाल जी से लड़ रहे थे, और कह रहे थे कि तुमने राम के खिलाफ कुछ बोला तो हथियार उठ जाएँगे (हालाँकि उन्होंने कुछ भी नहीं बोला था). जबकि परम आर्य के ब्लॉग पर उनका वक्तव्य मैंने खुद पढ़ा है जिसमें वह कहते हैं कि पुराण तो गधो के लिए हैं.
http://vedictoap.blogspot.com/2010/07/blog-post_27.html
उनकी मंशा कितनी भी अच्छी हो, लेकिन क्या हिन्दू धर्म के बारे में ऐसा लिखने वाला दूसरों पर ऊँगली उठाने का हक़दार है? जब प्रवीण शाह हिन्दू धर्म के बारे में उल्टा सीधा लिखते हैं तो किसी को भी बुरा नहीं लगता और जब असलम कासमी सही बात भी लिखते हैं तो लड़ियाँ शुरू. आखिर यह दोगलापन क्यों?
मिश्रा जी तो लखनऊ ब्लॉग ही छोड़ने का फैसला कर बैठे, और ठीकरा फोड़ना चाह रहे थे सलीम पर, कह रहे थे कि वहां गलत लिखा जा रहा है. जबकि वह ब्लॉग इसलिए नहीं छोड़ रहे कि यहाँ गलत लिखा जा रहा है, बल्कि इसलिए छोड़ रहे हैं, कि किसी ने आप लोगो के खिलाफ लिखने की हिम्मत दिखाई है, और किसी मुसलमान की इतनी हिम्मत कैसे हो गई?
ज़रा देखिये गुरु गोदियाल साहब ने क्या लिख रहें है अपनी पोस्ट में.... मिश्रा जी भी वहां हैं.
ये ईशू के भक्त, अल्लाह के वन्दों से कुछ कम अमानवीय नहीं !
http://gurugodiyal.blogspot.com/2010/08/blog-post_06.html
गोदियाल साहब अपने पुरखों के कुकृत्य भूल गए और अमेरिका की कहानी सुनाते-सुनाते तालिबानी आतंकवादियों की आड़ में इस्लाम धर्म को ही आतंकवादियों की श्रेणी में खड़ा कर दिया. अब ना तो तथाकथित नास्तिक मिश्रा जी कुछ कहेंगे और ना ही अन्य नास्तिक और आस्तिक भाई-बंधू. क्यों यह जो लिख रहा है यह उनकी ही बिरादरी का है. इसी दोगलेपन की निति की वजह से आज ब्लॉगजगत में इतना हंगामा मचा हुआ है. लेकिन हमेशा की तरह आपकी नज़र में तो बुरे हम ही होंगे, मुसलमान जो ठहरे.
और दूसरी तरफ प्रकाश गोविन्द ने ईश्वर / अल्लाह को जो गाली दी है वह भी मिश्रा जी समेत किसी को नज़र नहीं आई...
देखिया प्रवीण शाह ने कैसे चटकारे लगाकर पोस्ट बनाई है.
सबको सन्मति दे भगवान !
http://praveenshah.blogspot.com/2010/08/blog-post_06.html
वैसे अब यहाँ भी कोई प्रकाश गोविन्द महाशय को कानून की धमकी नहीं देगा? क्योंकि ईश्वर / अल्लाह के खिलाफ जो खुलेआम थप्पड़ मारने जैसी घटिया बात लिख रहा है वह तुम्हारे स्वयं के समुदाय का है. हालाँकि एक ही कम्प्लेंट में अन्दर होने तथा पुरे भारत के लोगो के द्वारा जूते खाने जैसा वक्तव्य यह महाशय दे रहे हैं.
शांति, प्रेम और भाई चारा कभी भी दोगली निति से नहीं आ सकता है. या तो सभी ब्लोगर बंधू फैसला करें कि किसी को भी कुछ भी उल्टा-सीधा नहीं लिखने देंगे. चाहे वह हिन्दू धर्म के खिलाफ हो या इस्लाम धर्म, या फिर कोई भी धर्म. या फिर दूसरों को गलियाँ या गलियों का समर्थन करने वालों को दूसरों को भी कुछ भी कहने का हक नहीं होना चाहिए. अगर आप मेरी बात का समर्थन या विरोध करते हैं तो अपनी राय ज़रूर दें.
देशनामा पर सुरेश चिपलूनकर साहब तो पुरे भारत वासियों को ही 'हराम की औलाद' कह चुके हैं. और वहां भी एक मुसलमान 'साजिद अली' को छोड़ कर किसी ने उनके खिलाफ कुछ नहीं बोला, क्यों? क्या विरोध केवल मुसलमानों का ही होना चाहिए?
http://deshnama.blogspot.com/2010/06/blog-post_29.html
सुरेश चिपलूनकर तो वेद-कुरान-पुराण को अप्रासंगिक और बकवास तक कह डालते हैं और किसी के मुंह से आह भी नहीं निकलती.
http://vedquran.blogspot.com/2010/04/save-yourself.html
मिश्रा जी सलीम और अनवर जमाल जी से लड़ रहे थे, और कह रहे थे कि तुमने राम के खिलाफ कुछ बोला तो हथियार उठ जाएँगे (हालाँकि उन्होंने कुछ भी नहीं बोला था). जबकि परम आर्य के ब्लॉग पर उनका वक्तव्य मैंने खुद पढ़ा है जिसमें वह कहते हैं कि पुराण तो गधो के लिए हैं.
http://vedictoap.blogspot.com/2010/07/blog-post_27.html
उनकी मंशा कितनी भी अच्छी हो, लेकिन क्या हिन्दू धर्म के बारे में ऐसा लिखने वाला दूसरों पर ऊँगली उठाने का हक़दार है? जब प्रवीण शाह हिन्दू धर्म के बारे में उल्टा सीधा लिखते हैं तो किसी को भी बुरा नहीं लगता और जब असलम कासमी सही बात भी लिखते हैं तो लड़ियाँ शुरू. आखिर यह दोगलापन क्यों?
मिश्रा जी तो लखनऊ ब्लॉग ही छोड़ने का फैसला कर बैठे, और ठीकरा फोड़ना चाह रहे थे सलीम पर, कह रहे थे कि वहां गलत लिखा जा रहा है. जबकि वह ब्लॉग इसलिए नहीं छोड़ रहे कि यहाँ गलत लिखा जा रहा है, बल्कि इसलिए छोड़ रहे हैं, कि किसी ने आप लोगो के खिलाफ लिखने की हिम्मत दिखाई है, और किसी मुसलमान की इतनी हिम्मत कैसे हो गई?
ज़रा देखिये गुरु गोदियाल साहब ने क्या लिख रहें है अपनी पोस्ट में.... मिश्रा जी भी वहां हैं.
ये ईशू के भक्त, अल्लाह के वन्दों से कुछ कम अमानवीय नहीं !
http://gurugodiyal.blogspot.com/2010/08/blog-post_06.html
गोदियाल साहब अपने पुरखों के कुकृत्य भूल गए और अमेरिका की कहानी सुनाते-सुनाते तालिबानी आतंकवादियों की आड़ में इस्लाम धर्म को ही आतंकवादियों की श्रेणी में खड़ा कर दिया. अब ना तो तथाकथित नास्तिक मिश्रा जी कुछ कहेंगे और ना ही अन्य नास्तिक और आस्तिक भाई-बंधू. क्यों यह जो लिख रहा है यह उनकी ही बिरादरी का है. इसी दोगलेपन की निति की वजह से आज ब्लॉगजगत में इतना हंगामा मचा हुआ है. लेकिन हमेशा की तरह आपकी नज़र में तो बुरे हम ही होंगे, मुसलमान जो ठहरे.
और दूसरी तरफ प्रकाश गोविन्द ने ईश्वर / अल्लाह को जो गाली दी है वह भी मिश्रा जी समेत किसी को नज़र नहीं आई...
देखिया प्रवीण शाह ने कैसे चटकारे लगाकर पोस्ट बनाई है.
सबको सन्मति दे भगवान !
http://praveenshah.blogspot.com/2010/08/blog-post_06.html
वैसे अब यहाँ भी कोई प्रकाश गोविन्द महाशय को कानून की धमकी नहीं देगा? क्योंकि ईश्वर / अल्लाह के खिलाफ जो खुलेआम थप्पड़ मारने जैसी घटिया बात लिख रहा है वह तुम्हारे स्वयं के समुदाय का है. हालाँकि एक ही कम्प्लेंट में अन्दर होने तथा पुरे भारत के लोगो के द्वारा जूते खाने जैसा वक्तव्य यह महाशय दे रहे हैं.
शांति, प्रेम और भाई चारा कभी भी दोगली निति से नहीं आ सकता है. या तो सभी ब्लोगर बंधू फैसला करें कि किसी को भी कुछ भी उल्टा-सीधा नहीं लिखने देंगे. चाहे वह हिन्दू धर्म के खिलाफ हो या इस्लाम धर्म, या फिर कोई भी धर्म. या फिर दूसरों को गलियाँ या गलियों का समर्थन करने वालों को दूसरों को भी कुछ भी कहने का हक नहीं होना चाहिए. अगर आप मेरी बात का समर्थन या विरोध करते हैं तो अपनी राय ज़रूर दें.
देशनामा पर सुरेश चिपलूनकर साहब तो पुरे भारत वासियों को ही 'हराम की औलाद' कह चुके हैं.
ReplyDeletechale dekhen unhone kya kaha thaa :
Suresh Chiplunkar said...
.......आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि "यह मेरा एग्रीगेटर है, मैं जिसे चाहूंगा रखूंगा, जिसे चाहूंगा निकाल दूंगा, जिसे मेरी नीतियाँ पसन्द ना हो वह भाड़ में जाये…" वाला Attitude रखना पड़ेगा, पड़ने वाली गालियाँ ignore करने की क्षमता भी विकसित करनी होंगी, क्योंकि भारत के लोग "इतने हरामखोर" हैं कि मुफ़्त में मिलने वाली चीज़ में भी खोट निकालने से बाज नहीं आते।
दूसरे लोग जो हिन्दु मिले तो उसे भी भांडे और मुस्लीम मिले तो उसे भी भांडे, फ़िर दोगलापन कहां आया?
ReplyDelete"…देशनामा पर सुरेश चिपलूनकर साहब तो पुरे भारत वासियों को ही 'हराम की औलाद' कह चुके हैं…" :) :)
ReplyDelete@ Ab Convinienti - अभी इन साहब को "हरामखोर" और "हराम की औलाद" में अन्तर पता नहीं है… इनकी कोई गलती नहीं है। ये हैं ही पक्के MLA... :) :)
और इन्हें यह भी न बतायें कि मैंने वह किस सन्दर्भ में लिखा था, और लिखने के बाद आज भी उस पर कायम हूं… कि ब्लागवाणी को बन्द करवाने में चन्द "हरामखोरों" की हरकत का ही हाथ था (है)… जो मुफ़्त में मिलने वाली सुविधा में भी नाखुश रहते हैं…
==========
खैर चलो इस बहाने इन साहब को कुछ हिट्स और कमेण्ट मिल जायेंगे… :) :)
MLA,
ReplyDeleteइस प्रकार शब्द और संदर्भ बदल कर आप द्वेष फ़ैलाने की कोशिश कर रहे है। यह तो अच्छा हुआ यहां ही स्पष्टीकरण आ गया।
आप लिखते है…।
"जब प्रवीण शाह हिन्दू धर्म के बारे में उल्टा सीधा लिखते हैं तो किसी को भी बुरा नहीं लगता"
आपको उनकी सहनशीलता से भी प्रोबलम है।
आखिर आप कहना क्या चाहते है, सभी से लडते झगडते रहें तो निष्पक्ष, वर्ना दोगले ?
आप सही से नहीं देख रहे हैं और घटना-क्रम को समग्रता से देखें तो जान पायेंगे कि शुरू किसने किया है.
ReplyDeleteआप को सन्मति दे भगवान.
आप नए आये हैं, आप उन लोगों से अलग लिखिए और शांति फैलाइए.
शुभकामनायें.
BHAI AAPNE SAHI SAWAL UTHAYA HAI. AAJKAL SHAREEF SAHAB NE KUCH SAWAL UTHA DIYE YA KABHI KUCH MAZAQIYA LAHJE ME ANWAR JAMAL SE NE KISI BLOGER BHAI KO CHHED DIYA TO HAMARE BIRADRANE WATAN AAG BAGULA HO GAYE.
ReplyDeleteBHAIYON BAHUT PAHLE SE BLOG DUNIYA ME KOI KAR TO KOI DHAR KOI KHAJOOR K DESH ME NAHIN ,DHAN KI KIYAREE MEIN NAFRAT BOTE RAHE TO HAMARE AALIM SATISH SAXENA SB, JANAB AALI ARVIND MISHRA JI KI NAZAR KYON NA GAYI.
AUR YEH LOG AAJ BHI VISHWAMAN KAM NAHN KAR RAHE HAIN.
SALIM SB KI KUCH POST SE AITRIRAZ HO SAKTA HAI.LEKIN LBA ME UNKI KOI POST AISI NA THI.JIS BAHANE MISHRA SB WAHAN SE ALVIDA HUYE.
HAAN SANGH K KHILAF UNKI POST THI.
AUR HAM KYA SARI DUNIYA JANTI HAI SANGH KO.
AFSOS KI SECULAR KAHNE WALE DIKHNE WALE SAXENA SB YA MISHRA SB KO KABHI SANGH KI KARTOOT YA MODI KE KARNAME DIKHAYI NAHIN DETE.
SANGH AUR HINDU HI DESH NAHIN HAI.
AUR NA HI SHARIF KHAN SB YA KOI KAMAL SB HI ISLAM KE REPRESENTITIVE NAHIN HAIN.
जो लोग कहते हैं कि हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार क़तई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वे भी आराम से बर्दाश्त कर लेते हैं बल्कि नास्तिकों से भी बढ़कर खुद हिन्दू धर्मग्रंथों पर प्रहार करते हैं। देखिये-
ReplyDeleteइसे यहाँ प्रस्तुत करके आप कहना क्या चाहते हैं ? पुराण तो गधों के लिए ही लिखे गए हैं -आप को क्या कहा जाय ?http://vedictoap.blogspot.com/2010/07/blog-post_27.html
1-ब्लॉग जगत के वे सभी लोग जिन्हें मेरे ब्लॉग पर आते ही संजयदृष्टि प्राप्त हो जाती है, इन जैसे कमेंट्स पर, पोस्ट्स पर धृतराष्ट्र का पार्ट प्ले करने लगते हैं , क्यों ?
2-मैं विनतीपूर्वक आपसे यह पूछना चाहता हूं, अगर पूछने पर पाबंदी न हो तो । आप लोग मुझ जैसे मनुवादी कहने वाले मुसलमान का भी हौसला पस्त करने के प्रयास करेंगे तो दूसरे ईमानदार मुसलमानों
को कैसे जोड़ पाएंगे ?
3-कौन और क्यूं है राम ? इस पोस्ट पर किसी ने श्री अरविन्द मिश्रा जी से यह न कहा कि आप हिंदू और मुसलमानों की तुलना न करें लेकिन जब मैं तुलना करके कहूंगा कि यह वक्तव्य कबीर साहब का नहीं है, उनके ग्रंथ में यह है ही नहीं तो यही लोग ऐतराज़ करने आ जाएंगे।
http://vedquran.blogspot.com/2010/08/is-it-fair-anwer-jamal.html
सुज्ञ जी इसका क्या मतलब हुआ समझ में नहीं आया...
ReplyDeleteसुज्ञ said...
दूसरे लोग जो हिन्दु मिले तो उसे भी भांडे और मुस्लीम मिले तो उसे भी भांडे, फ़िर दोगलापन कहां आया?
आपने कहा था:-
ReplyDelete"क्योंकि भारत के लोग "इतने हरामखोर" हैं कि मुफ़्त में मिलने वाली चीज़ में भी खोट निकालने से बाज नहीं आते।"
सुरेश जी आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की आप भी भारत की ही लोग हो... चीन के नहीं. हराम की औलाद कहो या हराम खोर है तो दोनों ही गाली ना, जो आप पुरे भारत वालो को दे रहे थे? चाहे मकसद कुछ भी हो? देश के कुछ लोग करप्ट है इसका मतलब यह नहीं है की सभी के सभी को करप्ट कह दें और उससे भी बढ़ कर हराम खोर कह दें. क्या यही एक इतने बड़े समझे जाने वाले लेखक की सोच है? क्या यही इस्लाम धर्म के अनुयायियों में करोडो कमियां निकलने वाले और एक सहनशील कहलाने वाले धर्म को मानने वाले की शालीनता है?
और कमेंट्स या हिट्स आप जैसे बड़े ब्लोगर होंगे, ना तो मैं लिखता हूँ और ना ही तारीफ या पहचान को चाहने वाला हूँ. जो बात मैंने पिछले कुछ महीने से महसूस की और पुरे सबूत के साथ पेश की अगर आप उसको भी ना मानो तो आपकी मर्ज़ी.
बुरा-बुरा तो सभी कह रहे हैं, लेकिन चिल्लाने से कुछ हासिल नहीं होगा. दुसरे को बुरा कहने और रोकने के लिए अपने बुरे को भी बुरा कहने की हिम्मत दिखानी ही पड़ेगी, वर्ना यूँ ही लड़ाई लड़ते रहो और माहौल खराब करते रहो.
सुज्ञ साहब
ReplyDeleteप्रवीण शाह का ईश्वर / अल्लाह को थप्पड़ मारने वाले कमेंट्स को चटकारे लगा कर पोस्ट बनाना औरताले में बंद करने के लिए कहना, मिश्रा जी का पुराणों को गधो के लिए कहना और सुरेश चिपलूनकर का वेद-कुरान-पुराण को अप्रासंगिक और बकवास करार देना अगर आपको सहनशीलता लगता है तो क्यों बुरा कहते हो असलम कासमी को???
अगर सच्चे धार्मिक हो तो अपनों के बुरे को भी बुरा कहना सीखो
.
ReplyDelete.
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@ MLA (मोहम्मद लियाकत अली) साहब,
वैसे तो मैं यह जवाब पहले ही यहाँ पर... दे चुका हूँ, परंतु आपने यह पोस्ट बनाई है तो उसे दोहरा दे रहा हूँ ताकि सनद रहे...
.
.
.
@ MLA लियाकत अली साहब,
*** न तो प्रकाश गोविन्द जी ने ईश्वर / अल्लाह को गाली दी है और न प्रवीण शाह चटखारे ले रहा है... अगर आपको ऐसा लगता है तो यों समझिये कि समझ-समझ का फेर है यह...
*** जब आप किसी पर इस तरह का आक्षेप करते हैं तो उस ब्लॉगर के द्वारा पहले लिखे आलेख-टिप्पणियों को भी पढ़ें... फिर मन बनायें...
*** हम दोनों लोग जो कहना चाह रहे हैं उसे वही समझ सकता है जो धर्म के मर्म तक पहुँच सका हो...
*** रही बात 'ईश्वर' की ओर से आपको बुरा लगने की... तो ठन्ड करो यार... धर्म कहता है कि फैसले के दिन 'वह' न्याय करेगा... अब हम तो वही कहेंगे न जो अपनी समझ से हमें सही लगता है... अगर 'उसे' हमारा आचरण व बातें बुरी लगी होंगी... तो खौलते तेल की कढ़ाही में डुबकियों के लिये हैं तैयार हम... आप आनंद से देखियेगा!
*** लेकिन यह भी याद रहे कि अगर 'वह' है तो मुझे पूरा भरोसा है कि मैं उसका सबसे 'प्यारा बच्चा' हूँ... क्योंकि तरह तरह के सवाल पूछ कर... बार बार उसको ताने देकर, शिकायत कर के... हर विद्रूप-हर असमानता-हर यथास्थिति-हर भाई भाई के बीच दूरी बनाये रखने के प्रपंच जो 'उस' के नाम पर आप जैसे लोग करते हो, उन सब प्रपंचों के लिये 'उस' को भी बराबर का भागीदार मान कर मैंने 'उस' के मूल चरित्र को उघाड़ कर रख दिया है... जबकि बाकियों ने पुस्तकों के लिखे मात्र पर यकीन कर लिया है... इस लिये फैसले के दिन हमारी जगहें बदल भी सकती हैं... सोचना जरूर...!!!
...
देखिये मैं आप लोगो की तरह हर बात साफ-साफ़ और आसानी से तो समझा नहीं पाया इसलिए समझ नहीं आ रहा है तो मुआफी चाहता हूँ. मेरे कहने का मतलब यह था की जब भंडा फोडू, और हर्फे गलत इस्लाम मज़हब के खिलाफ बेसिर-पैर की उलजलूल और ज़हरीली बातें लिखते हैं तो क्यों कोई उन्हें बुरा नहीं कहता? क्यों उन्हें कानून की धमकी नहीं दी जाती? क्यों हथियार उठाने वाली बात नहीं होती? और जब हिन्दू धर्म के खिलाफ (हालाँकि खिलाफ कोई लिखता भी नहीं है, ज़बरदस्ती खिलाफ दिखने के लिए लोग चिल्लाने लगते हैं) कोई लिखता है तो बुरा-भला भी कहा जाता है, कानून की तथा हथियार उठाने की धमकी भी दी जाती है... आखिर क्यों? क्या यह दोगला बन नहीं है?
ReplyDeleteवहीँ मैं यह कहना छह रहा था की जब मिश्रा जी, प्रकाश गोविन्द, प्रवीण शाह और सुरेश चिलुनकर जैसे लोग हिन्दू धर्म के भगवानो और ग्रंथो को बुरा कहते हैं, मज़ाक उड़ाते हैं तो कुछ नहीं होता? और वाही बात अगर कोई मुसलमान कहता है तो क़यामत क्यों आ जाती है?
.
ReplyDelete.
.
@ MLA लियाकत अली साहब,
अब जब आपने यह बात उठा ही दी है तो आदरणीय प्रकाश गोविन्द जी का पक्ष व तर्क भी जरूर देखियेगा।
आदरणीय सतीश सक्सेना जी के विचार भी आपकी मदद करेंगे, यह मेरा मानना है।
आभार!
...
किसी लेख को यह टिप्पणी पर कमेंट्स देने से पहले ध्यान से पढना अवश्य चाहिए उसके मंतव्य को समझे बिना जल्द्वाजी में कमेंट्स देने वालों को बाद में कई बार पछतावा हो सकता है ! आज के सन्दर्भ में आप लोगों ने अरविन्द मिश्र , प्रवीण शाह और प्रकाश गोविन्द की बातों का अर्थ जल्दवाजी में गलत निकाल लिया और प्रकाशित कर दिया ! कृपया स्पष्टि कारन ध्यान से पढ़ें और कहे का विश्वास भी करें !
ReplyDeleteआज के समय में जब हर धर्म के अन्दर भी तरह तरह के वर्ग और विरोधी खेमे बने हुए हैं, अंदरूनी खामियों से न लड़कर दूसरों की कमियां बताना शोभा नहीं देता है ! इससे फासले और बढ़ेंगे ! आज के समय में लोगों का आवाहन करना कि हम सबसे अच्छे हैं, आप हमें माने ....इसे मैं संकीर्ण मानसिकता मानता हूँ !
समय कि पुकार है कि हम कहें कि धर्म सब अच्छे हैं हमें इस्लाम का भी इतना आदर करना चाहिए जितना अपने धर्म का तब आनंद आएगा मिलकर होली और ईद मनाने का !
शुभकामनायें !
मनुष्य समाज का जो क़बीला ,जो जाति जो धर्म सत्ता में आ जाता है वह समाज की श्रेष्ठता के पैमाने अपनी श्रेष्ठता के आधार पर ही बना देता है [यह श्रेष्ठता होती भी है या नहीं यह अलग प्रश्न है] यानी सत्ता आये हुए की शक्ती ही व्यवस्था और कानून हो जाया करती है,
ReplyDeleteसशंकित होना क्या जायज़ नहीं कि क्या वास्तव में आज ऐसा हो रहा है !!
गर हो रहा है तो मुखर विरोध होना चाहिए.
शमा ए हरम हो या दिया सोमनाथ का
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/08/blog-post.html
प्रवीण जी, आप मेरे ब्लॉग पर आए और लेख को पढ़ा इसके लिए मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.
ReplyDeleteआपने कहा, की मेरे पुराने लेख पढ़िए, तो मैंने आपके कुछ पुराने लेख ज़रूर पढ़े हैं. जितने लोग अनवर जमाल साहब के ब्लॉग पर कमेन्ट लिखते हैं मैं जब भी टाइम मिलता है उन्हें पढता हूँ.
मैं यहाँ पर आपकी, सुरेश चिपलूनकर साहब की, सतीश सक्सेना, मिश्रा जी या गुरु गोदियाल की गलतियाँ नहीं निकाल रहा हूँ. बल्कि यह कहना चाह रहा हूँ, की हिन्दू समुदाय के लोग भगवान् को गाली देते हैं तो वह सहनशील कहलाते हैं, और मुस्लिम समुदाय के लोग अगर सवाल भी मालूम कर लें तो वह आतंकवादी कहलाते हैं. गुरु गोदियाल जी साफ़ साफ़ कहते हैं की "ये ईशू के भक्त, अल्लाह के वन्दों से कुछ कम अमानवीय नहीं", लेकिन किसी को बुराई नज़र नहीं आती है क्यों?????? क्या यह दोगला पन नहीं है?
जिस तरह आप धर्म के मर्म की बात कर रहे हैं तो बताइए अयाज़ साहब या असलम कासमी ने श्री राम के जन्म के बारे में मालूम कर लिया तो आपको उस बात का मर्म क्यों नहीं नज़र आया? और लगे सभी बुराइयाँ करने...
मेरे ख्याल से वह यह कहना चाह रहे थे की कोई कहता है श्री राम १०-१२ लाख साल पहले पैदा हुए और कोई कहता है ४ हज़ार साल पहले. जब तिथि में इतना विरोधाभास है तो जगह पर इतनी पक्की सुचना कैसे हो गई की सबको पता है की बाबरी मस्जिद की जगह ही उनका जन्म हुआ था?
@एक बेसिक बात आप सभी समझ नहीं पाते -
ReplyDeleteहिन्दू जीवन पद्धति में इतनी आजादी है और यह सनातन काल से है और रहेगी कि वह अपने धर्मग्रन्थों की भी खिल्ली उड़ा सकता है -पुराण सचमुच बेपढ़ के लिए ही लिखे गए हैं .....इसी लिए उनका उद्धरण कोई मायने नहीं रखता -किसी को हिन्दू विचारधारा के बारे में जो भी तर्क कुतर्क करना हो वह उपनिषदों का उद्धरण दे तो विचारणीय है !
सतीश सक्सेना जी,
ReplyDeleteआपने पहले शब्द लिखे अब मतलब समझा रहे हो? पहली बात तो यह की आप लोगो की बात का मतलब तो मैं पहले ही समझ गया था, लेकिन जैसे सभी लोगों को केवल मुसलमानों की ही गलतियां नज़र आती है, और हमारे शब्दों को पकड़ते हैं. ऐसे ही मैंने आप लोगो की मिसाल दी.
सुरेश चिपलूनकर को हमेशा सारे बुरे कार्य मुसलमानों में ही नज़र आते हैं, और लोग वहां जा जा कर उनकी तारीफें करते है और जब अनवर साहब कोई ठीक बात भी लिखते हैं तो सभी को उसमें बुराई नज़र आती है? क्या ऐसा नहीं है? कितने ही हर्फे-गलत और भन्दा फोडू - अंडा फोडू जैसे नामों वाले लोग खुलेआम इस्लाम धर्म के बारे में बचकानी दलीलों के साथ गन्दी-गन्दी गलियां देते हैं, आपने अनवर साहब को कानून की धमकी दी, मिश्र जी ने हथियार उठाने जैसी बातें कहीं........ क्या किसी ने उन लोगो को एक लफ्ज़ भी कहा? बल्कि वहां भी अमित शर्मा और सुग्य जैसे कुछ लोग खुलेआम तारीफें करते हैं और बाकी लोग बेनामी के रूप में टिप्पणियां करके उनके हौसलों को बढ़ाते हैं. और जब असलम कासमी आपके धर्म के बारे में लिखते हैं तो सभी को बुरा लगने लगता है. आखिर यह विरोध दूसरी तरफ क्यों नहीं होता? क्या यह दोगला पन नहीं है?
मुझे आप लोगो की तरह सुलझे हुए लफ़्ज़ों में लिखना नहीं आता. इसलिए कुछ समझ में ना आया हो तो मुआफ करना और मेरी बातों का मर्म समझना.
मिश्र जी पहले खुद खुले आम पुराणों को गधो के लिए कह रहे हैं, सुरेश चिपलूनकर खुद वेद-कुरान-पुराण को बकवास कह रहे हैं, लेकिन वह फिर भी बुरे नहीं हैं? आखिर क्यों??? और मिश्र जी खुद अनवार जमाल साहब के ब्लॉग पर श्री राम के सपोर्ट में लिख रहे हैं? आखिर पुरानो को गधो के लिए कहने वाला रातो-रात कैसे श्री राम का भक्त हो गया? या फिर उनके श्री राम के जन्म के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए किये गए सवाल से गुस्सा आगया? मतलब खुद चाहे जो भी बोले, कोई और कुछ भी ना बोले.
ReplyDeleteMLA साहब आप बार-बार मेरा नाम लेकर मुझे कोस रहे हैं इसलिये दोबारा आना पड़ा -
ReplyDeleteवैसे तो अरविन्द मिश्रा जी ने जवाब दे दिया है, फ़िर भी आपकी इस बात कि - "यह कहना चाह रहा हूँ, की हिन्दू समुदाय के लोग भगवान् को गाली देते हैं तो वह सहनशील कहलाते हैं, और मुस्लिम समुदाय के लोग अगर सवाल भी मालूम कर लें तो वह आतंकवादी कहलाते हैं…" को दोहराते हुए स्पष्ट और साफ़ कहना चाहता हूं कि
1) यदि कोई हिन्दू ब्लॉगर, भगवान या वेद-पुराण की खिल्ली उड़ाये, बुरा भला कहे, उसमें खोट निकाले तो हमें मंजूर है, हम उससे बहस करेंगे, उसे समझाएंगे… यही हिन्दू धर्म का लोकतन्त्र है, लेकिन आप खुद अपनी गिरेबान में झाँक कर देख लें कि यदि कोई मुस्लिम (चाहे फ़िरदौस हो या महफ़ूज़ या सलमान रुशदी ही) कुरान या पैगम्बर के बारे में कुछ आलोचना करता है तो क्या होता है…
2) यही बात मैं अनवर साहब और सलीम से भी कह चुका हूं कि आपको जो भी कहना हो, जो भी लिखना हो, जो भी प्रचार करना हो… शौक से करो, लेकिन उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ इस्लाम तक ही सीमित रखिये…। कोई मुसलमान यदि हिन्दू धर्म के बारे में, देवी-देवताओं के बारे में, वेदों-ग्रन्थों के बारे में कोई बात लिखेगा तो स्वाभाविक तौर पर "किसी भी हिन्दू ब्लागर" को बर्दाश्त नहीं होने वाला…
और आप मुझे मेरी 2-4 पोस्ट दिखाईये जिसमें मैंने कुरान अथवा पैगम्बर के बारे में अपमानजनक बातें लिखी हों… (और हाँ, तारीख भी देख लीजियेगा कि वह पोस्ट मैंने कैरानवी और जमाल की पोस्ट के बाद लिखी या पहले)। इसे चैलेंज न समझें, यह मेरा बिश्वास है।
बात साफ़ है, जब तक मुस्लिम ब्लॉगर, हिन्दू धर्म के सम्बन्ध में ऊलजलूल लिखना बन्द नहीं करते, तब तक भण्डाफ़ोड़ू या हर्फ़-ए-गलत जैसे लोग भी आते-जाते रहेंगे…।
दोनों पक्षों को सीधी सी बात समझना होगी कि "तुम" तुम हो, "हम" हम हैं… तुम्हारी किताब तुम्हारी हैं, और हमारे पुराण हमारे…, तुम्हारे पैगम्बर तुम्हारे हैं, हमारे ईश्वर हमारे… इसलिये यदि इनके बीच कोई तुलना नहीं करे, तो शान्ति बनी रहेगी।
शायद आप समझ गये होंगे… और मैं इन्तज़ार कर रहा हूं कि आप मुझे मेरी 2-4 पोस्टें दिखायेंगे…
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अब एक विशेष नोट (पूरी बात और बहस का निचोड़ समझाने के लिये) :-
मैं वेद-पुराणों के एक बड़े हिस्से को अभी भी बकवास और कालातीत (बीते ज़माने की बात) कहता हूं, कोई हिन्दू बुरा नहीं मानेगा, मानेगा भी तो हम उसे समझा लेंगे, मना लेंगे। आप तो मुस्लिम हैं, आप एक बार कुरान को बकवास और कालातीत कहकर देख लीजिये… बस, दोनों समुदायों की मानसिकता के बीच का अन्तर आपको समझ में आ जायेगा…
बताईये ब्लॉगजगत जी आपसे पूछा जा रहा है ??
ReplyDeleteमैं निकलता हूं मैं तो एक ब्लॉगर हूं .............
मैंने भाई प्रवीण शाह जी को संबोधित करके कुछ कहा है, आप स्वयं को भी संबोधित समझें-
ReplyDelete@ प्रिय प्रवीण जी ! आप एक न्यायप्रिय इंसान हैं, ऐसा मैं जानता-मानता हूं। आप कहते हैं कि धर्म ने कभी न्याय नहीं किया। आपने कहा और किसी ने भी ऐतराज़ न किया और न ही इसे ‘हिन्दू आस्थाओं‘ पर प्रहार माना गया।जबकि मैं कहता हूं कि ‘धर्म‘ ने, ऋषियों ने सदा न्याय ही किया, अन्याय किया विकारी लोगों ने और उनका कर्म पाप कहलायेगा न कि धर्म। इसी आधार पर ‘मूल वैदिक धर्म‘ को मैं ईश्वरीय और न्याययुक्त मानता हूं। इसके बावजूद मुझे हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार करने वाला माना जाता है। आप जैसे मेरे नियमित पाठक भी मुझे उलाहना दें , इससे ज़्यादा दुखदायी क्या हो सकता है ?
*** आप राष्ट्रपति के लिये जो लैंग्वेज यूज़ नहीं कर सकते, उसे सारी सृष्टि के मालिक के लिये भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिये। आप नास्तिक हैं, आप उसका न होना मानते हैं लेकिन आस्तिकों के लिये तो वह मौजूद है। वे आपके द्वारा उसका उपहास क्यों बर्दाश्त करेंगे भला ?
सृष्टिकर्ता को अरबी में अल्लाह कहते हैं और संस्कृत में ईश्वर और राम। मैंने कभी न तो उसके बारे में खुद हंसी-मज़ाक़ किया है और न ही दूसरों की ‘हरकतों‘ को पसंद ही किया है।
सृष्टिकर्ता राम की मैं उपासना करता हूं और राजा रामचन्द्र जी को मर्यादा पुरूषोत्तम का दर्जा देकर प्यार और सम्मान करता हूं। ऐसा करने से मेरे द्वारा दूरियां बढ़ रही हैं, यह मेरे लिये आश्चर्य और शोक का विषय है। आप कमियां बताएं, दूरियां घटाने के लिये मैं और ज़्यादा सुधार करूंगा, इन्शा अल्लाह।
*** आप सही कहते हैं परलोक में हमारी जगहें आपस में बदल भी सकती हैं। मैं ईश्वर के प्रकोप से डरता हूं और उससे क्षमा चाहता हूं और आप सभी भाइयों से भी। परलोक का दण्ड और नर्क एक वास्तविकता है। पुराणों की जिन बातों को मैं मानता हूं , उनमें से एक यह भी है।
*** कोई चीज़ मुझे नहीं डराती लेकिन जिस चीज़ को आप मज़ाक़ के तौर पर कह गुज़रे उसने मुझे वाक़ई डरा दिया है। रमज़ान का महीना आ रहा है, मैं अपना गहन विश्लेषण करूंगा। कहीं आपकी बात वाक़ई सच न हो जाये। अपने साथ मैं आपके लिये भी प्रभुवर से कल्याण और उद्धार की प्रार्थना करूंगा।
*** इन्सान की ज़िम्मेदारी यह है कि सही रास्ते पर चले लेकिन इन्सान हमेशा सही नहीं हो सकता, मैं भी नहीं । आपकी आलोचना मुझे सही रास्ता दिखाएगी बशर्ते कि वे निष्पक्ष हों। जिस चीज़ का आरोप मुझ पर लगाया जा रहा है, वे खुद उस ‘ज़्यादती‘ से मुक्त हों।
सीधी बात का सीधा जवाब देना तो किसी ने सीखा ही नहीं यहाँ… मेरा सवाल सीधा सा है -
ReplyDelete1) मुस्लिम ब्लॉगर्स को हिन्दू धर्म, देवी-देवताओं-वेदों-पुराणों पर लिखना ही क्यों चाहिये? और
2) जिस प्रकार हिन्दू ब्लॉगर्स वेदों और भगवान की आलोचना, तर्क-वितर्क कर सकते हैं, क्या मुस्लिम ब्लॉगर्स कुरान और पैगम्बर की आलोचना कर सकते हैं?
@ जनाब ! सीधा सा ही जवाब दिया है अगर आप समझना चाहें तो...
ReplyDelete1-बहुत से महापुरूषों को हिन्दू भाई अवतार का या देवता का दर्जा देते हैं वे बहुत से मुसलमानों के भी पूर्वज हैं । जब उनसे इस्लाम नहीं काटता , कोई हिंदू प्रचारक नहीं काटता मुसलमानों को तो आप ही क्यों काटना चाहते हैं ? मुसलमानों को अपने पूर्वजों के बारे में जानने और कहने का हक़ हासिल है।
2- हिन्दू भाई सत्य और तथ्य के विश्लेषण के लिये जो तरीक़ा अपनाते हैं मुसलमान आलिम भी बहुत सी हदीसों के सत्यापन में और कुरआन के हुक्म के निर्धारण में यथोचित तर्क-वितर्क करते हैं। आप मुसलमानों को हू-ब-हू हिंदुओं के नक्शे क़दम पर क्यों चलाना चाहते हैं ?
अब सवाल बहुत हुए और यह बताइये कि आपने मेरे ब्लॉग पर बुरक़े पर बेहूदा कमेंट क्यों किया ?
आपके टिप्पणी बॉक्स में नहीं आ सका कृपया कमेन्ट के लिए अस्थायी पोस्ट देखें :
ReplyDeletehttp://pratul-kavyatherapy.blogspot.com/
नज़र ........
मुल्क में रहना हो ग़र
जाँचिये खुद की नज़र
चश्मे-ग़ुरू-बाशिन्दगी
का असर, हम-कद-कसर।
............................ गज़न्फर, गज़न्फर।
इस्तमाली खाना थाली
हो गया सुराख- ऐ-घर?
इधर से मैं उधर से तू
गौर फरमा, पता कर।
............................ गज़न्फर, गज़न्फर।
असबाब को ही दी तवज्जो
आये नज़र कमतर ज़बर।
पीर मुंसिफ मौलवी
सबका नज़रिया बेअसर।
............................ गज़न्फर, गज़न्फर।
पोस्ट पर टिप्पणियां देखकर लगा कि कुछ और बात भी होनी चाहिए, तो चलिए आप सब akaltara.blogspot.com पर 'राम-रहीमःमुख्तसर चित्रकथा' देखने के लिए आमंत्रित हैं.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , हिंदी ब्लॉग लेखन को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सार्थक है. निश्चित रूप से आप हिंदी लेखन को नया आयाम देंगे.
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग लेखको को संगठित करने व हिंदी को बढ़ावा देने के लिए "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" की stha आप हमारे ब्लॉग पर भी आयें. यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "फालोवर" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . हम आपकी प्रतीक्षा करेंगे ....
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